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महात्मा, बापू, राष्ट्रपिता, जानें महात्मा गांधी किसने दिए थे अलग- अलग नाम और क्या है इसके पीछे की कहनी ?

भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता होगा। देश को सत्य और अहिंसा की राह पर चलना सिखाने वाले महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। हर साल 2 अक्टूबर को उनकी जयंती के मौके पर विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी है। गांधी जी के पिता का नाम करमचंद गांधी था जो कि राजकोट के दीवान थे और इनकी माता का नाम पुतलीबाई था।

गांधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। इसके बाद इनके पिता का राजकोट ट्रांसफर हो गया जिसके बाद उन्होंने अपनी बची हुई शिक्षा राजकोट से की। बाद में वो कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। यहां 3 सालों तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और सन् 1891 में वापस भारत आ गए। गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा जी से हुआ था। लोग उन्हें प्यार से ‘बा’ कहकर पुकारते थे। शादी से पहले तक कस्तूरबा पढ़ना-लिखना नहीं जानती थीं। गांधी जी ने उन्हें लिखना- पढ़ना सिखाया।

महात्मा गांधी को अलग- अलग नामों से बुलाया जाता है। कोई उन्हें राष्ट्रपिता कहता है कोई उन्हें बापू कहता है तो कोई महात्मा कहता है। यहां जानें उनको अलग- अलग नाम दिए किसने और क्या है इसके पीछे की कहनी ?

महात्मा एक संस्कृत का शब्द है। इसका मतलब होता है महान आत्मा। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और गांधी जी की पहली मुलाकात मार्च 1915 में शांति निकेतन में हुई थी। तब उन्होंने गांधी जी को पहली बार महात्मा शब्द से संबोधित किया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने ये बात अपनी ऑटोबॉयोग्राफी में लिखी है। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को गुरुदेव भी कहा था। इसके बाद से इन दोनों महापुरूषों ने देश की आजादी में अहम योगदान दिया। 

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गांधी जी को बापू नाम बिहार के चंपारण जिले  के रहने वाले एक किसान राजकुमार शुक्ल ने दीया था । चंपारण जिले में अंग्रेज भारतीय किसानों पर लगातार अत्याचार कर रहे थे। जिसके बाद गांधी जी ने अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ बापू के आंदोलन की शुरुआत चंपारण से ही हुई थी। राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसे पढ़ने के बाद वो चंपारण पहुंचे। वहीं, उन्होंने किसानों को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराने का सिलसिला शुरू किया। उसके बाद पूरा देश उन्हें बापू नाम से जानने लगा।

मोहनदास करमचन्द गांधी को पहली बार नेताजी सुभाष चन्द्रबोस ने राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया था। 4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ‘देश का पिता’ कहकर संबोधित किया था इसके बाद 6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने एक बार फिर रेडियो सिंगापुर से एक संदेश प्रसारित कर गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। बाद में भारत सरकार ने भी इस नाम को मान्यता दे दी। गांधी जी के देहांत के बाद उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे’।

30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। गांधी जी को तीन गोलियां मारी गयी थी, अंतिम समय उनके ‘हे राम’ शब्द कहा था। उनकी मृत्यु के बाद नई दिल्ली के राजघाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया है |

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