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मंगलवार, अप्रैल 23, 2024
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श्री प्रकाश शुक्ला :- यूपी का वो डॉन जो सिर्फ 25 साल की उम्र जुर्म की दुनिया बादशाह बन गया।

फिल्मो मे तो आपने कई गैंगस्टर को देखा होगा जैसे भीखू मात्रे, वासेपुर का फैज़ल खान, ऐसे कई किरदार आये है,जो आप की जेहन मे होगा। आज हम आप को एक ऐसे डॉन की कहानी सुनाएंगे जो सच मे डॉन था ,ऐसा डॉन जिसने सिर्फ 25 साल की उम्र में कई राज्यो की पुलिस का जीना हराम कर दिया था। एक ऐसा डॉन जिसेकी तारीफ दाऊद भी करता था। उसने बादशत की कहानी इतनी ही नही उसने उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ली वो 6 करोड़ जो उस समय की सबसे बड़ी सुपारी थी और ये सुपारी ही उसके मौत का कारण बनी।

ये पहला ऐसा डॉन था जो अपने आप को पंडितो का डॉन बोलता था। डॉन के साथ साथ वो आशिक़ी मे भी माहिर था।

ये कहानी है यूपी के उस डॉन की, जो अपराध और ताकत की सीढ़ियां इतनी तेजी से चढ़ा, जिस तेजी से आप पब जी मे चिकन डीनर के लिए भागते है. उसके डॉन बने की कहानी की शुरुवात उसके मोहल्ले से होती है जहाँ कुछ मनचले उसकी बहन को छेड़ देते है और उस लड़की का भाई श्री प्रकाश अपनी बहन की बेज़्ज़ती का बदला उस लड़के की हत्या कर के लेता है ,बस यही से उसकी जुर्म की दुनिया की ज़मीन तैयार हो गयी.फिर धीरे धीरे वो जुर्म की सीढ़ियां चढ़ने लगा उसके साथ साथ वो कई नेताओं और बदमाशों के लिए काम कर के कच्ची उम्र में बड़ी हैसियत बना ली. उस वक़्त खबरों मे केवल उसी के चर्चे होते थे. लखनऊ में हर जगह केवल उसी की बातें होती थीं. क्राइम की दुनिया और यूपी की जनता उस समय चौक गयी जब उसने प्रदेश के चीफ मिनिस्टर कल्याण सिंह की सुपारी ले ली. इस सुपारी की कीमत थी 6 करोड़ रुपये.जो उस समय की सबसे बड़ी सुपारी थी।

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आखिर कौन था श्री प्रकाश शुक्ला

लड़के का नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला. गोरखपुर के मामखोर गांव में उसके पिता जी एक स्कूल मास्टर थे. बचपन से ही उस की कद काठी काफी सुडौल थी तो श्रीप्रकाश पहलवानी की तरफ मुड़ गया .अपने खेल से उसने लोकल अखाड़ों में उसने अच्छा नाम कमाया.लेकिन शायद किस्मत को कुछ और पसंद था 20 साल की उम्र में पहेली बार उसका नाम पुलिस की रिकॉर्ड बुक में आगया, और आने का कारण एक आदमी की हत्या जिसने उसकी बहन को देख सीटी बजा के छेड़ दिया था। बस इसी बात पे गुस्सा हो कर शुक्ला ने उस आदमी की हत्या कर दी। इसे पहले पुलिस उसको पकड़ पाती वो अपने किसी साथी की मदद से बैंकॉक भाग गया। वहाँ कुछ महीने गुजरने के बाद जब वो अपने देश लौटा तब तक वो पूरा बदल चुका था।

भारत आने के बाद उसने अपने बदले रूप के दर्शन करवा दिए उसने जुर्म की दुनिया मे सनसनी फैला दी और उस टाइम उसको जिसकी छत्र छाया मिली वो कोई और नही बिहार के मोकामा के सूरजभान थे जो अपने आप मे जुर्म की दुनिया के मझे हुए खिलाड़ी थे. धीरे-धीरे शुक्ला ने अपना वर्चस्व बढ़ाने लगा और यूपी, बिहार के साथ साथ दिल्ली नेपाल बंगाल सब जगह सारे गैरकानूनी धंधे करने लगा. उसने फिरौती के लिए किडनैपिंग हत्या लूट यह तक उसने लॉटरी सिस्टम को भी अपने हाथ मे ले लिया।माना जाता है उसने अकेले 20 लोग मारा था अपने ही हाथों से।

आला दर्जे का था अय्याश

जुर्म के साथ ही जुड़ता है एक और काम जिसे अय्याशी बोलते है। और श्री प्रकाश शुक्ला एक नंबर का अय्याश था , लडकिया उसकी कमजोरी थी , मसाज पार्लर जाना
गर्लफ्रैंड बनाना । मंहगी कार , फिल्मो का शौक भी था। साथ साथ उसको मोबाइल फ़ोन का शौक था उस टाइम मोबाइल रखना अपने आप मे बड़ी बात थी वो अपने दोस्तो मे डिगे भी मरता था की उसका डेली का मोबाइल बिल पाँच हजार का आता है।

विधयक को भुना बीच सड़क पे

90 के दशक में यू.पी क्राइम की दुनिया की धुरी था, महाराजगंज के लक्ष्मीपुर के एक विधायक थे वीरेंद्र शाही. साल 1997 में शुक्ला ने शाही को लखनऊ में बीच सड़क पे गोलियों से भून दिया और पूरे राज्य मे हल्ला हो गया कम उम्र के लड़के ने शाही को पेल दिया. इस कांड से पुराने माफिया भी सकते मे आगये.माना जाता था कि शुक्ला ने अपनी एक हिटलिस्ट बनाई थी । श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का. जो चिल्लूपार विधानसभा सीट से 15 सालों से विधायक थे. कई बार जेल से चुनाव जीत चुके थे. अचानक से शुक्ला के दिमाग मे चुनाव लड़ने का मन किया और उसने चिल्लूपार विधानसभा से चुनाव लड़ने का सोच और इस कलिये उसने हरिशंकर तिवारी को धमकी भी दे डाली की वो ये सीट से हट जाए नही तो उसको अंजाम भुगतना पड़ेगा।

रेलवे के टेंडर में केवल एक नाम

90 के दशक में यूपी में रेलवे टेंडर बहुत भारी मात्र में निकलते थे और ये टेंडर केवल बाहुबली व्यक्तियों को मिलते थे और इसके चलते कई गैंगवार भी हुए,जब श्री प्रकाश शुक्ला की एंट्री इन टेंडरों में हुई तो सारे बाहुबली पीछे हट गए। शुक्ला का साफ बोलना था कि अगर कोई उसके और टेंडर के बीच मे आया तो तो उसने मौत से दोस्ती कर ली है। इस कारण वश उस टाइम के कई बदमाश या तो वहां से चले गए या अपराध की दुनिया त्याग दी।

बिहार मे भी था डंका उसके नाम का

बिहार सरकार में उस समय एक बाहुबली मंत्री हुआ करते थे बृज बिहारी प्रसाद. यूपी में भी उनके नाम का सिक्का चलता था.यही बात शुक्ला को चुभने लगी वो अपने सामने किसी को टिकने नही देना चाहता था . इसी कारण श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसको उसी के शहर पटना में गोलियों से भून डाला. वो दिन था 13 जून 1998 को जब इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के सामने बृजबिहारी अपनी लाल बत्ती कार से उतरे ही थे कि एके-47 से लैस 4 गुर्गो ने उन्हें गुड आफ्टरनून कह कर गोलियों से भून दिया था।
बृजबिहारी के मौत का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि यूपी पुलिस को ऐसी खबर मिली कि जिसे उसके होश उड़ गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के CM कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी. 6 करोड़ रुपये में।बस यही खबर यूपी एसटीएफ को टिगर कर गयी और एसटीएफ उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गयी।

एसटीएफ उसकी कमजोरी को अपनी ताकत बनाया

सुपारी कांड के बाद एसटीएफ का केवल मकसद था श्री प्रकाश शुक्ला को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना। इसके लिए यूपी पुलिस ने अपने खबरी नेटवर्क को एक्टिव कर दिया। इस नेटवर्क का उनको फायदा भी मिला एक खबरी से उसको पता लगा कि शुक्ला उस टाइम दिल्ली के वसंत विहार में रुका हुआ है।एक कहावत बहुत फेमस है विनाश काले विपरीत बुद्धि ये लाइन शुक्ला पे सही साबित होती है की उसने वो गलती कर दी थी जो वो कभी नही करता था। उसके पास हर समय 14 सिम कार्ड होते थे और वो हमेशा बदल बदल के बात करता था लेकिन कई हफ्ते से वो केवल एक ही सिम का इस्तेमाल करने लगा था. जिससे पुलिस को उसकी पहचान और उसकी लोकशन ट्रेस करने मे आसानी होगयी. 21 सितंबर की शाम एक खबरी ने एसटीएफ को बताया कि अगली सुबह 5:45 बजे शुक्ला रांची के लिए दिल्ली से हवाई जहाज पकड़ेगा. तब एसटीएफ दिल्ली एयरपोर्ट पर उसको पकड़ने का प्लान बना लिया और तड़के 3 बजे पुलिस तैनात हो गई, पर वह नहीं आया.

किस्मत ने दिया एसटीएफ का साथ

लेकिन इस बार किस्मत एसटीएफ के साथ थी और उसने एक बार फिर से शुक्ला को ट्रेस कर लिया वो अभी भी वही नंबर इस्तेमाल कर रहा था। और पुलिस ने पाया कि वो मोहन नगर ग़ाज़ियाबाद अपनी गर्ल फ्रेंड से मिलने जा रहा है एसटीएफ ने तुरंत एक अपनी टीम को वहाँ एक्टिव कर दिया करीब दोपहर एक बजकर पचास मिनट उसकी नीली सिएलो कार मोहननगर फ्लाइओवर के पास दिखी तो वहां एसटीएफ 5 गाड़ियां तैनात थीं. गाड़ी का नंबर HR26 G 7305 फर्जी था, वह किसी स्कूटर को आवंटित था.

दोनों तरफ से हुई गोलियों की बौछार

उस समय कार खुद शुक्ला चला रहा था और उसके दो साथी अनुज प्रताप उसके बगल और सुधीर पीछे बैठे हुए थे। पुलिस की जीप देख कर शुक्ला को शक हो गया तो इसने अपनी कार की स्पीड और तेज कर दी जिसे उसने पुलिस की दो गाड़ियों को चकमा दे दिया लेकिन तभी इंस्पेक्टर वीपीएस चौहान ने अपनी जीप उसके कार के।आगे लगा दी जिस के कारण शुक्ला ने अपनी कार को यूपी आवास कॉलोनी की तरफ मोड़ दी उसके बाद भी पुलिस ने उसका पीछा नही छोड़ा। उस दिन उसके पास उसकी ए के 47 भी नही थी वर्ना वो उस दिन भी भाग के निकल जाता। अंत मे पुलिस मुठभेड़ में उसकी मौत होगयी और यूपी एसटीएफ को बड़ी कामयाबी मिली।

शुक्ला का ऐसा अंत नहीं होता अगर वह बदमाशी और रंगबाजी के नशे में चूर न होता. उसकी राजनीति में आने इक्छा अधूरी रह गयी अगर वो राजनीति मे आ जाता तो वो और भी खतरनाक हो जाता। लोग तो यह तक बोलने लगे थे कि कहि वो एक दिन मुख्यमंत्री ने बन जायेगा।

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