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रविवार, दिसम्बर 10, 2023
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क्या आप जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए 17 साल की उम्र में ही खा ली थी सीने पर गोली?

कनकलता बरुआ, उन वीरांगनाओं में से हैं, जिन्होंने मात्र 17 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए बलिदान दे दिया था। कनकलता बरुआ भारत की स्वतन्त्रता सेनानी थीं, जिनको अंग्रेजों ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गोली मार दी थी।

कनकलता बरुआ को अंग्रेजों ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गोली मार दी। ये बात है भारत छोडो आन्दोलन के दौरान जब एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया। कनकलता की उम्र उस समय 18 साल की थी। उस उम्र में उन्होंने सब कुछ छोड़ आज़ादी को अधिक महत्वपूर्ण माना। 20 सितंबर, 1942 के दिन तेजपुर से 82 मील दूर गहपुर थाने पर तिरंगा फहराया जाना था।

सुबह-सुबह वह वहां पहुंची तो गहपुर थाने की ओर चारों दिशाओं से जुलूस उमड़ पड़ा था। उस आत्म बलिदानी जत्थे में सभी युवक और युवतियाँ थीं। दोनों हाथों में तिरंगा झंडा थामे कनकलता उस जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं। उनके साथ पूरा जत्था था, उस ज़ुलूस के सदस्यों में कचहरी पर झंडा फहराने की होड़ सी मची हुई थी। थाना प्रभारी ने कहा, “एक इंच भी आगे बढ़े तो गोलियों से उड़ा दिए जाओगे।”

कनकलता जैसे ही तिरंगा लेकर आगे बढ़ीं, वैसे ही जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी गई। पहली गोली कनकलता की छाती पर लगी जिसे बोगी कछारी नाम के सिपाही ने चलाई थी। दूसरी गोली मुकंद कालोती को लगी, जिसकी तत्काल मृत्यु हो गई। इन दोनों की मृत्यु के बाद भी गोलियां चलती रहीं।

कनकलता बरुआ भारत की ऐसी शहीद पुत्री थीं, जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिलीं। मात्र 18 वर्षीय कनकलता अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हों, लेकिन त्याग व बलिदान में उनका कद किसी से कम नहीं।

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मोहित नागर
मोहित नागर
मोहित नागर एक कंटेंट राइटर है जो देश- विदेश, पॉलिटिक्स, एंटरटेनमेंट, हेल्थ और वास्तु से जुड़ी खबरों पर लिखना पसंद करते हैं। उन्होंने डॉ० भीमराव अम्बेडकर कॉलेज (दिल्ली यूनिवर्सिटी) से अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है। मोहित को लगभग 3 वर्ष का समाचार वेब पोर्टल एवं पब्लिक रिलेशन संस्थाओं के साथ काम करने का अनुभव है।

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