31.7 C
Delhi
शुक्रवार, अप्रैल 26, 2024
Recommended By- BEdigitech

Sherdil The Pilibhit Saga Review: अगांव के सरपंच की कहानी, गांव वासियों के लिए करना चाहता है कुछ बड़ा

पंकज त्रिपाठी की फिल्म शेरदिल द पीलीभीत सागा एक गांव के सरपंच की कहानी है। जो जंगली जानवरों के फसल नष्ट करने से परेशान है। फसल बर्बादी हो गयी तो भुखमरी और गरीबी भी बढ़ रही है। सरपंच ने सरकारी ऑफिसों के खूब चक्कर काटे लेकिन कुछ नहीं हो सका। उसे इंतजार कि कोई ऐसी सरकारी स्कीम आ जाए जिससे वो गांव वोलों के लिए कुछ कर सकें।

पंकज त्रिपाठी की फिल्म शेरदिल 2017 की एक घठना से प्रेरित है। जहां पीलीभीत के कुछ लोगों ने अपने घर के बुजुर्गों को जंगल में भेजना शुरू किया ताकि उन्हें सरकारी मुआवजे मिल सकें।

क्या है कहानी-

शेरदिल की कहानी झुंडाव गांव के सरपंच गंगाराम की है, जिससे गांव में जंगली जानवरों के फसल नष्ट कर देनें से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। फसलें बर्बाद होने से गांव में भुखमरी और गरीबी आ गयी है. सरपंच सरकारी ऑफिस खूब चक्कर काटे है लेकिन कुछ भी नहीं हो पाया है। ऐसी स्कीम की उसे आस ही, जिसका फायदा उसके गांव वासियों को मिल जाए। सरकारी ऑफिस के सामने गंगाराम की नजर एक नोटिस बोर्ड पर पड़ती है, जहां लिखा था कि अगर टाइगर रिजर्व एरिया में टाइगर के अटैक से मारे गए व्यक्ति के परिवार को दस लाख का मुआवजा दिया जाएगा। बस अब गंगाराम ने फैसला लिया कि वो गांववालों के लिए जंगल जाकर बाघ का शिकार करेगा। ताकि उसकी मौत के बाद मुआवजा गांव वालों को मिल सकें। घने जंगल के बीच बाघ को तलाशते गंगाराम की मुलाकात शिकारी जिम अहमद (नीरज काबी) से होती है। जिसका मकसद बाघ को मारकर पैसे कमाना है. एक बाघ को मारने को तैयार है और दूसरा बाघ से मरने को। आगे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

एनालिसिस-

सृजित मुखर्जी ने फिल्म का डायरेक्शन किया है। फिल्म उलझी नजर आती है। राइटिंग पार्ट बहुत ही ढीला है। इसे जो मैसेज दैना था वो सही तरीके से नहीं पहुंच पाता है। फर्स्ट हाफ ज्यादा स्लो है। पंकज त्रिपाठी का जंगलों में घूमते हुए खुद से बात करना बोर करता है। उनकी एक्टिंग ओवर लगती है. वहीं सेकेंड हाफ में नीरज काबी व पंकज दोनों की डायलॉगबाजी अच्छी है. तियाश सेन ने जंगल को अच्छे से कैप्चर किया है. एडिटिंग कुछ खास नहीं है। शांतनु मोईत्रा के म्यूजिक डिपार्टमेंट ने अपना काम बेहतर किया है।

Advertisement

पूरी फिल्म पंकज त्रिपाठी के कंधों पर थी. जिसका प्रेशर पंकज की एक्टिंग पर साफ नजर आता है। एक सशक्त अभिनेता होने के बावजूद फर्स्ट हाफ में वो निराश करते है. हालांकि सेकेंड हाफ अच्छा हैं. नीरज काबी फ्रेश फील देते है। सयानी गुप्ता ने अच्छा काम किया है। लेकिन वो इस फिल्म में मिस-फिट लगी है।

फिल्म को एक अच्छी नीयत से बनाया गया है। अगर फिल्म, एंटरटेनमेंट के लिए देखना चाहते हो तो निराशा हाथ लगेगी। पंकज त्रिपाठी के फैन फिल्म को एक बार देख सकते हैं. हालांकि ट्रेलर जैसा फिल्म में ना ही सस्पेंस है और ना ही वाइल्ड एडवेंचर है।फिल्म वन टाइम वॉच है।

ये भी पढ़े – लोकेश कनगराज की अगली फिल्म में थलापति विजय बनेंगे गैंगस्टर

राजन चौहान
राजन चौहानhttps://www.duniyakamood.com/
मेरा नाम राजन चौहान हैं। मैं एक कंटेंट राइटर/एडिटर दुनिया का मूड न्यूज़ पोर्टल के साथ काम कर रहा हूँ। मेरे अनुभव में कुछ समाचार चैनलों, वेब पोर्टलों, विज्ञापन एजेंसियों और अन्य के लिए लेखन शामिल है। मेरी एजुकेशन बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी (सीएसई) हैं। कंटेंट राइटर के अलावा, मुझे फिल्म मेकिंग और फिक्शन लेखन में गहरी दिलचस्पी है।

Related Articles

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Latest Articles